मनमोहन मूर्ति तुझी माते

मनमोहन मूर्ति तुझी माते
सकल जगाची माय माउली
गोड असे किति नाते।। मनमोहन....।।

कुरवाळिशि तू सकल जगाला
निवविशि अमृत-हाते।। मनमोहन....।।

स्नेहदयेचे मळे पिकविशी
देशी प्रेमरसाते।। मनमोहन....।।

सकळ धर्म हे बाळ तुझे गे
सांभाळिशि त्याते।। मनमोहन....।।

भेदभाव तो तुजजवळ नसे
सुखविशि तू सकळांते।। मनमोहन....।।

श्रद्धा देशी ज्ञाना देशी
सारिशि दूर तमाते।। मनमोहन....।।

थोर ऋषी तव थोर संत तव
शिकविति शुभ धर्माते।। मनमोहन....।।

सरिता सागर सृष्टि चराचर
गाती तुझ्याच यशाते।। मनमोहन....।।

तव शुभ पावन नाम सनातन
उचंबळवि हृदयाते।। मनमोहन....।।

त्वत्स्मरणाने त्वदगुण-गाने
भरुनि मदंतर जाते।। मनमोहन....।।

तव सेवा मम हातुन होता
मरण सुधारस वाटे।। मनमोहन....।।


कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- त्रिचनापल्ली तुरुंग, जानेवारी १९३१

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