हमाली

विझल्या  कालांतराने  पोरक्या  मशाली
कालचा  कार्यकर्ता  पुन्हा  बने  मवाली

विरल्या  हवेत फ़सव्या  घोषणा  कधीच्या
पुनश्च  लोक आता  ईश्वराच्या  हवाली

ल्यालें  राजवस्त्रें ते गावगुंड  सारे
जनता- जनार्दनाला  ही  लक्तरें  मिळाली

उजवें  अथवा  डावें , भगवें  वा  निधर्मी
कोणी  पुसें  न  आता  दीनांची  खुशाली

आपल्या  दु:खाचा  वाहतो  भार जो तो
चुकली  कुणास  येथे  ही रोजची  हमाली


कवी - मिलिंद फणसे

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