महाराष्ट्रास!

महाराष्ट्रा! ऊठ दष्ट्रा शत्रुमर्मी रोवुनी
सिंहसा तू साज शौर्य ठाक तेजे खवळुनी।।

दिव्य गाणी विक्रमाची दुर्ग तूझे गाउनी
अंबरस्थां निर्जरांना हर्षवीती निशिदिनी।। महाराष्ट्रा...।।

दरीखोरी खोल, गेली वीररक्ते रंगुनी
शेष ती संतोषवीती त्वद्यशाला गाउनी।। महाराष्ट्रा...।।

अंबुराशी करित सेवा त्वत्पदा प्रक्षाळुनी
त्वत्कथेला दशदिशांना ऐकवीतो गर्जुनी।। महाराष्ट्रा...।।

म्लानता ही दीनता ही स्वत्त्वदाही दवडुनी
स्वप्रतापे तळप तरणी अखिल धरणी दिपवुनी।। महाराष्ट्रा...।।


कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- अमळनेर, १९२८

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