हृदय जणु तुम्हां ते नसे।।
बंधु उपाशी लाखो तरिहि
सुचित विलास कसे।। हृदय....।।
परदेशी किति वस्तू घेता
बंधुस घास नसे।। हृदय....।।
बाबू गेनू जरि ते मरती
तरिही सुस्त कसे।। हृदय....।।
खादी साधी तीहि न घेता
असुन सुशिक्षितसे।। हृदय....।।
माणुसकी कशि तीळ ना उरली
बसता स्वस्थ कसे।। हृदय....।।
जगतामध्ये निज आईचे
हरहर होइ हसे।। हृदय....।।
कोट्यावधी तुम्हि पुत्र असोनी
माता रडत बसे।। हृदय....।।
देशभक्त ते हाका मारिति
त्यांचे बसत घसे।। हृदय....।।
स्वदेशिचे ते साधे अजुनी
तत्त्व न चित्ति ठसे।। हृदय....।।
बंधू खरा जो बंधुसाठी
प्राणहि फेकितसे।। हृदय....।।
पुत्र खरा जो मातेसाठी
सर्वहि होमितसे।। हृदय....।।
बंधू रडता आई मरता
कुणि का स्वस्थ बसे।। हृदय....।।
कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- अमळनेर, सप्टेंबर १९३१
बंधु उपाशी लाखो तरिहि
सुचित विलास कसे।। हृदय....।।
परदेशी किति वस्तू घेता
बंधुस घास नसे।। हृदय....।।
बाबू गेनू जरि ते मरती
तरिही सुस्त कसे।। हृदय....।।
खादी साधी तीहि न घेता
असुन सुशिक्षितसे।। हृदय....।।
माणुसकी कशि तीळ ना उरली
बसता स्वस्थ कसे।। हृदय....।।
जगतामध्ये निज आईचे
हरहर होइ हसे।। हृदय....।।
कोट्यावधी तुम्हि पुत्र असोनी
माता रडत बसे।। हृदय....।।
देशभक्त ते हाका मारिति
त्यांचे बसत घसे।। हृदय....।।
स्वदेशिचे ते साधे अजुनी
तत्त्व न चित्ति ठसे।। हृदय....।।
बंधू खरा जो बंधुसाठी
प्राणहि फेकितसे।। हृदय....।।
पुत्र खरा जो मातेसाठी
सर्वहि होमितसे।। हृदय....।।
बंधू रडता आई मरता
कुणि का स्वस्थ बसे।। हृदय....।।
कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- अमळनेर, सप्टेंबर १९३१
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा