प्रिय भारता सुंदरा!।।
ज्ञानविहारा! परम उदारा!
कुदशा जाइल तव कधि दूरा?।। भारता....।।
सत्त्व कुठे तव? त्याग कुठे तव?
तोडी कवण तव सुयशो-हारा?।। भारता....।।
पुत्र न दिसती, वैरी गमती
जे तुज लोटिति दुर्गति-दारा।। भारता....।।
शोक न करि तू प्रभुला प्रिय तू
अवतरुन तुला तारिल, मधुरा!।। भारता....।।
कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- अमळनेर, ऑगस्ट १९३१
ज्ञानविहारा! परम उदारा!
कुदशा जाइल तव कधि दूरा?।। भारता....।।
सत्त्व कुठे तव? त्याग कुठे तव?
तोडी कवण तव सुयशो-हारा?।। भारता....।।
पुत्र न दिसती, वैरी गमती
जे तुज लोटिति दुर्गति-दारा।। भारता....।।
शोक न करि तू प्रभुला प्रिय तू
अवतरुन तुला तारिल, मधुरा!।। भारता....।।
कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- अमळनेर, ऑगस्ट १९३१
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