मनमोहना! भवमोचना!
भूक लागली
तव चरणांची
किति तरि साची
मम लोचना।। मन....।।
सकलकारी
तुजला बघु दे
तन्मय होउ दे
प्रियदर्शना।। मन....।।
शतजन्मावधि
मूर्ति न दिसली
मज अंतरली
अंतरमणा।। मन....।।
सोडि कठोरा!
निष्ठुरता तव
धीर न मज लव
मम जीवना!।। मन....।।
कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- नाशिक तुरुंग, सप्टेंबर १९३२
भूक लागली
तव चरणांची
किति तरि साची
मम लोचना।। मन....।।
सकलकारी
तुजला बघु दे
तन्मय होउ दे
प्रियदर्शना।। मन....।।
शतजन्मावधि
मूर्ति न दिसली
मज अंतरली
अंतरमणा।। मन....।।
सोडि कठोरा!
निष्ठुरता तव
धीर न मज लव
मम जीवना!।। मन....।।
कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- नाशिक तुरुंग, सप्टेंबर १९३२
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा