जरि वाटे भेटावे
प्रभुला डोळ्यांनी देखावे।। जरि....।।
श्रम निशिदिन तरि बापा!
सत्कर्मी अनलस रंगावे।। जरि....।।
प्रभु रात्रंदिन श्रमतो
विश्रांतीसुख त्या नच ठावे।। जरि....।।
प्रभुला श्रम आवडतो
जरि तू श्रमशिल तरि तो पावे।। जरि....।।
पळहि न दवडी व्यर्थ
क्षण सोन्याचा कण समजावे।। जरि....।।
सत्कर्मांची सुमने
जमवुन प्रभुपद तू पुजावे।। जरि....।।
रवि, शशि, तारे, वारे
सागर, सरिता, श्रमति बघावे।। जरि....।।
सेवेची महती जाणी
कष्टांची महती जाणी
कष्टुनिया प्रभुपद गाठावे।। जरि....।।
कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- धुळे तुरुंग, मे १९३२
प्रभुला डोळ्यांनी देखावे।। जरि....।।
श्रम निशिदिन तरि बापा!
सत्कर्मी अनलस रंगावे।। जरि....।।
प्रभु रात्रंदिन श्रमतो
विश्रांतीसुख त्या नच ठावे।। जरि....।।
प्रभुला श्रम आवडतो
जरि तू श्रमशिल तरि तो पावे।। जरि....।।
पळहि न दवडी व्यर्थ
क्षण सोन्याचा कण समजावे।। जरि....।।
सत्कर्मांची सुमने
जमवुन प्रभुपद तू पुजावे।। जरि....।।
रवि, शशि, तारे, वारे
सागर, सरिता, श्रमति बघावे।। जरि....।।
सेवेची महती जाणी
कष्टांची महती जाणी
कष्टुनिया प्रभुपद गाठावे।। जरि....।।
कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- धुळे तुरुंग, मे १९३२
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