मन माझे सुंदर होवो
वरी जावो
हरी गावो
प्रभुपदकमली रत राहो।। मन....।।
द्वेषमत्सरा न मिळो अवसर
कामक्रोधा न मिळो अवसर
निष्पाप होउनी जावो।। मन....।।
प्रेमपूर हृदयात भरू दे
भूतदया हृदयात भरू दे
शम, समता, सरिता वाहो।। मन....।।
पावित्र्याचे वातावरण
चित्ताभोवति राहो भरून
कुविचार-धूलि ना येवो।। मन....।।
आपपर असा न उरो भाव
रंक असो अथवा तो राव
परमात्मा सकळी पाहो।। मन....।।
धैर्य धरू दे, त्यागा वरु दे
कष्टसंकटां मिठी मारु दे
आलस्य लयाला जावो।। मन....।।
अशेचा शुभ दीप जळू दे
नैराश्याचे घन तम पळू दे
मनि श्रद्धा अविचल राहो।। मन....।।
सत्याची मज सेवा करु दे
सत्यास्तव मज केवळ जगु दे
सत्यात स्वर्ग मम राहो।। मन....।।
करुनी अहर्निश आटाआटी
ध्येयदेव गाठायासाठी
हे प्राण धावुनी जावो।। मन....।।
कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- धुळे तुरुंग, जून १९३२
वरी जावो
हरी गावो
प्रभुपदकमली रत राहो।। मन....।।
द्वेषमत्सरा न मिळो अवसर
कामक्रोधा न मिळो अवसर
निष्पाप होउनी जावो।। मन....।।
प्रेमपूर हृदयात भरू दे
भूतदया हृदयात भरू दे
शम, समता, सरिता वाहो।। मन....।।
पावित्र्याचे वातावरण
चित्ताभोवति राहो भरून
कुविचार-धूलि ना येवो।। मन....।।
आपपर असा न उरो भाव
रंक असो अथवा तो राव
परमात्मा सकळी पाहो।। मन....।।
धैर्य धरू दे, त्यागा वरु दे
कष्टसंकटां मिठी मारु दे
आलस्य लयाला जावो।। मन....।।
अशेचा शुभ दीप जळू दे
नैराश्याचे घन तम पळू दे
मनि श्रद्धा अविचल राहो।। मन....।।
सत्याची मज सेवा करु दे
सत्यास्तव मज केवळ जगु दे
सत्यात स्वर्ग मम राहो।। मन....।।
करुनी अहर्निश आटाआटी
ध्येयदेव गाठायासाठी
हे प्राण धावुनी जावो।। मन....।।
कवी - साने गुरुजी
कवितासंग्रह - पत्री
- धुळे तुरुंग, जून १९३२
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा